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मिट्टी की ऊँगली

 

मिट्टी की एक ऊँगली
आज भी आँगन में उठी रहती है
जैसे कोई बूढ़ा पलाश
हवा से पूछ रहा हो
कि यादों का रंग इतना गहरा कैसे हो जाता है

बिखरी रौशनी में
एक पुरानी कोठरी धीरे से खुलती है
अंदर शब्दों का एक छोटा दीप
अपनी लौ सँभाल रहा होता है
मानो अँधेरा उससे ही साहस सीखता हो

गाँव की पगडंडी
अब भी उसी कदम की प्रतीक्षा करती है
जिसने कभी चलते चलते
राह को एक कहानी बना दिया था
और कहानियों को एक धड़कन

टूटी हाजरे का कटोरा
बरसों से खिड़की पर रखा है
उसकी दरारों में
एक लेखक की थकन भी है
और उसकी जिद भी
जिसने हर टूटन को गीत में बदल दिया

सन्नाटे में भी
कभी कभी एक धुन उठती है
जो बताती है
कि लिखने वाले चले जाते हैं
पर लिखे हुए कदमों की प्रतिध्वनि
समय के पार भी चलती रहती है

यही प्रतिध्वनि
अनिलचंद्र ठाकुर का सच है
यही उनकी मिट्टी की ऊँगली है
जो हर रचना के साथ
फिर से जन्म ले लेती है



अनिलचंद्र ठाकुर का व्यक्तित्व किसी शांत नदी जैसा था जिसकी सतह साधारण दिखती है पर भीतर गहराई में अनगिनत कहानियाँ बहती रहती हैं। उनके शब्दों में मिट्टी की गर्माहट थी और संवेदना की रोशनी भी थी। वे जीवन को दूर से नहीं देखते थे। जीवन को अपने भीतर उतार कर महसूस करते थे और फिर उसे शब्दों में ढालते थे।

उनकी रचनाओं में गाँव की धूल भरी पगडंडियाँ भी सांस लेती हैं और संघर्ष से भरा मनुष्य भी धीरे धीरे चलने लगता है। किसी पात्र की पीड़ा उनके भीतर से उठती थी और किसी पात्र की मुस्कान उनकी आत्मा की चमक से भर जाती थी। शायद यही कारण है कि उनकी कहानियाँ पढ़ते समय पाठक को लगता है जैसे लेखक उसी के पास बैठा है और धीरे से उसका मन समझ रहा है।

अनिलचंद्र ठाकुर का स्वभाव सरल था पर उनकी दृष्टि अत्यंत गहरी थी। साधारण क्षणों में असाधारण अर्थ देख लेने की उनमें अद्भुत क्षमता थी। वे समाज के उन चेहरों को आवाज देते थे जो अक्सर अनसुने रह जाते हैं। उनका लेखन किसी दीवार को नहीं खड़ा करता था बल्कि टूटे हुए मनों के बीच एक पुल बनाता था।

उनकी कलम कभी कठोर नहीं होती थी। वह सहलाती थी। वह समझती थी। वह चुपचाप उन ज़िंदगियों पर रोशनी डाल देती थी जिन्हें दुनिया अक्सर अंधेरे में छोड़ देती है। साहित्य उनके लिए सिर्फ रचना नहीं था। वह सेवा भी था। वह मानवता के प्रति एक शांत प्रण भी था।

अनिलचंद्र ठाकुर की उपस्थिति अब शब्दों में जीवित है और समय बीतने के बाद भी उनकी भाषा आज भी उसी तरह धड़कती है। कोई पात्र रोता है तो लेखक का हृदय पीछे से सुनाई देता है। कोई पात्र हँसता है तो उनकी आँखों की सादगी उस हँसी को पूरा कर देती है। उनकी रचनाएँ सचमुच यह बताती हैं कि लेखक का वास्तविक घर पाठक के भीतर ही होता है।

उनका साहित्य एक ऐसी उजली याद है जो पढ़ने वाले को भीतर से थोड़ा बेहतर बना देती है। यही उनकी सबसे बड़ी पहचान है और यही उनकी अमरता भी।


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